11/29/2015

About Swami Vivekananda life in Hindi

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda)

Swami Vivekananda
Swami Vivekananda
आज हम एक ऐसे व्यक्ति की शक्तियों के विषय में जानेंगे जो एक ऐसी अदभुत शक्ति के पुंज थे| जिन्होंने अपने विचारो के बल पर अपना प्रभुत्व पुरे विश्व पर बनाया था| जो इस दुनिया में शारीरिक रूप से तो बहुत कम समय के लिए जीवित रहे थे लेकिन पुरी दुनिया के दिलो में सदियों-सदियों तक जीवित रहेंगे| वह हमारे साथ कल भी थे, आज भी हैं और हमेशा रहेंगे| उस महान शक्ति का नाम स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) हैं| उनका नाम लेने मात्र से ही आपकी अपनी शक्ति स्वत: ही दोगुनी हो जाती हैं| उनके बारे में आप जितना अधिक जानेंगे उतना ही अपने जीवन के लक्ष्यों को अपने करीब पाएंगे |

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) का संक्षिप्त इतिहास (Brief History of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जी का जन्म 12 जनवरी 1863  को कलकत्ता(अब कोलकाता), भारत में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका नाम उनके माता-पिता ने नरेन्द्रनाथ दत्त रखा था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक जाने-माने वकील थे। विश्वनाथ दत्त जी पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने  में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी भाषा का अध्यन्न कराकर पश्चिमी सभ्यता का  अनुसरण करने को प्रेरित करते थे। परन्तु उनकी माता भुवनेश्वरी देवी इसके पूर्णत: विपरीत थी| वह एक धार्मिक विचारों का अनुसरण करने वाली धार्मिक महिला थीं। उनकी माता अपना अधिकांश समय भगवान शिवा की भक्ति में बिताती थी। नरेन्द्र अपने बचपन से ही एक कुशाग्र बुद्धि वाले बालक थे और परमेश्वर के बारे में जानने को जिज्ञासु थे। इसलिए वह पहले ब्रह्म समाज में सम्मिलित हो गये परन्तु वहाँ उनके मन को संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई। वे वेदान्त और योग को पश्चिम सभ्यता में प्रचारित करना  चाहते थे। 1879 में  स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश लिया था| उसके बाद 1880 में जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश लिया| नवंबर 1881 में स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) अपने गुरु श्री  रामकृष्ण परमहंस जी पहली बार मिले थे| 1882 से 1886  रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे| 1884 में उनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का सम्पूर्ण भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। 1884 में ही स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने स्नातक की परीक्षा उतीर्ण की| 16 अगस्त 1886 को उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी का निधन हो गया था| अपने गुरु के निधन के पश्चात 1886  में स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने  वराहनगर मठ की स्थापना की तथा जनवरी 1887 में  वराह नगर मठ में ही संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा भी ली थी| 1890 से 1893 के मध्य  एक परिव्राजक के भारत देश में भ्रमण करते रहे| 31 मई 1893 को स्वामी जी  बम्बई(अब मुम्बई) से अमेरिका देश की लिए रवाना हो गए| 25 जुलाई 1893 को  वैंकूवर, कनाडा पहुँचे तथा 30 जुलाई 1893 को शिकागो देश में पहुँच गए| माह अगस्त 1893 में  हार्वर्ड विश्वविधालय के प्रो॰ जॉन राइट से मुलाकात की थी| 11 सितम्बर 1893 में  विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान किया था और 27 सितम्बर 1893 में विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान किया| 16 मई 1894 में  हावर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण किया और नवंबर 1894, न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना की| जनवरी 1895  न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं को संचालित किया और अगस्त 1895 में  पेरिस के लिए रवाना हो गए| अक्टूबर 1895 में  लन्दन में व्याख्यान किया| 6 दिसम्बर 1895 वापस न्यूयॉर्क आ गए| 1895 से 1896 एक साल न्यूयार्क और लन्दन में समय बिताया| 1896 में पुन: भारत देश आ गए| 15 जनवरी 1897 को  श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो चले गए| जनवरी, 1897  में रामेश्वरम में  असंख्य लोगो के सामने भाषण दिया| 6 से 15 फ़रवरी 1897 के मध्य मद्रास(अब चेन्नई) में रहे| 1 मई 1897 को स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की| 19 मार्च 1899 में  मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना की और फिर एक बार पश्चिमी देशो की यात्रा पर निकल गए| 31 जुलाई 1899 को  न्यूयॉर्क में पुन: चले गए| 22 फ़रवरी 1900  में  सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना की थी| जून 1900  में  न्यूयॉर्क में आखिरी बार कक्षा दी और 26 जुलाई 1900 को  यूरोप के लिए रवाना हो गए| 24 अक्टूबर 1900 को स्वामी जी ने  विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र जैसे कई देशों की यात्रा की और 26 नवम्बर 1900 में भारत आ गए| 9 दिसम्बर 1900 को  बेलूर मठ आ गए| 1901 में उन्होंने  मायावती ,पूर्वी बंगाल और असम की यात्रा की| 1902 में बोध गया और वाराणसी की यात्रा कर बेलूर मठ वापिस आ गए| 

4 जुलाई 1902 को विवेकानंद जी प्रात: जल्दी उठे और बेलूर मठ के पूजा कक्ष में पूजा करने के लिए चले गये और बाद में   लगभग तीन घंटो तक योग क्रियाये भी की| उन्होंने अपने छात्रो को शुक्ल-यजुर्वेद, संस्कृत और योग साधना के विषय में पढाया बाद में अपने सहशिष्यों के साथ चर्चा की और रामकृष्ण मठ में वैदिक महाविधालय बनाने के विषय में विचार विमर्श करने लगे| शाम सात बजे विवेकानंद अपने कमरे में गये, और अपने शिष्य को कहा कि उनकी शांति को भंग न किया जाए, और नौ बजे रात्री को योग ध्यान करते समय ही उनकी मृत्यु हो गयी| उनके शिष्यों के अनुसार उनकी महासमाधि का कारण ब्रह्मरंधरा (एक प्रकार की योग क्रिया) था| उन्होंने अपनी मृत्यु के बारे में पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि वे चालीस वर्षो  से अधिक नहीं जी पाएंगे| बेलूर की गंगा नदी में उनके शव को चन्दन की लकडियो से अग्नि दे दी गयी|

स्वामी जी को अपना शरीर त्यागे सौ वर्ष से अधिक का समय हो गया है| लेकिन उनके प्रेरक विचारो से मिलने वाली शक्ति करोडो लोगो में आज भी प्राणवायु का कार्य कर रही हैं| आओ हम सब उनकी शक्तियों पर विचार करें और इन शक्तियों से प्रेरणा लेकर अपना जीवन सफल बनाये| स्वामी जी की यह शक्तियां निम्नलिखित हैं|

कुशाग्र बुद्धि

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जी एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे| वह अपनी उम्र के बच्चो से कहीं आगे थे| कभी-कभी स्वामी जी ऐसे सवाल पूछा किया करते थे| जिनका जवाब बड़े-बड़े विद्वानों के बस की बात नहीं थी| यधपि स्वामी जी उनतालीस वर्ष की अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे पर इस सिमित समय में स्वामी जी ने जो कार्य किये वह तो कोई व्यक्ति दो सौ वर्षो में भी आसानी से न कर पाए|

अथिति देवो: भव

जब स्वामी जी के पिता की मृत्यु हुई तो उनके घर की दशा बहुत ही खराब थी। लेकिन इस गरीबी के समय में भी स्वामी जी बहुत बड़े अतिथि-सेवी थे। वे स्वयं भूखे-प्यासे रहकर भी अतिथि को भोजन कराते थे| वह खुद बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते रहते लेकिन अपने घर आये मेहमान को कभी भी कष्ट नहीं उठाने दिया। स्वामी जी अपने अतिथि में भगवान के दर्शन किया करते थे|

गुरु भगवान समतुल्य

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने गुरुजी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया था। उनके गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस का शरीर अत्यन्त जीर्ण हो गया था। उनके गुरुदेव के शरीर को त्यागने के अंतिम दिनों में स्वामी जी के घर की हालत बहुत ही नाजुक थी| लेकिन स्वामी जी ने कभी भी स्वयं के भोजन की चिन्ता नहीं की और गुरु की सेवा में ही लगे रहते थे|
एक बार गुरुदेव के एक शिष्य ने गुरुदेव की सेवा में घृणा का भाव दिखाया| यह सब देखकर स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जी को बहुत ही क्रोध आ गया। वे अपने उस सह शिक्षार्थी को सेवा का पाठ पढ़ाते थे और स्वयं गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति अगाध प्रेम दिखाते हुए उनके बिस्तर के पास खून, कफ आदि से भरी हुई थूकदानी को उठाकर फेंकते थे। और गुरु जी के आसपास गंदगी को साफ़ किया करते थे| उन्होंने जैसी निस्वार्थ सेवा अपने गुरु के लिए की, ऐसी सेवा तो कोई अपने माँ-बाप की भी नहीं करता हैं| उन्होंने गुरु की सेवा के लिए अपने आप को पुरी तरह समर्पित कर दिया था|  

बड़े-बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने में विश्वास  

विवेकानन्द बड़े-बड़े सपने देखा करते थे। उन्‍होंने एक ऐसे उच्च समाज की कल्‍पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मानव के बीच में कोई भी भेद न रहे। उन्‍होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को भी इसी रूप में रखा था।

सन्यासी

स्वामी जी ने एक सन्यासी का जीवन जिया था| उन्होंने कभी विवाह नहीं किया था और अपना पूरा जीवन अपने गुरु, अपने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था|

कुशल वक्ता

स्वामी जी ओज से पूर्ण भाषण देने में पुरी तरह सक्षम थे| जब स्वामी जी ने अमेरिका में भाषण दिया था तो पूरे विश्व ने उसे सह्रदय स्वीकार किया था| उस भाषण का कुछ अंश निम्नलिखित हैं|

मेरे प्यारे अमेरीकी भाइयो और बहनों!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम सब लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार को प्रकट करते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष और उत्साह से भर रहा हैं। इस सम्पूर्ण संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से भी मैं आपको सहर्ष धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की जननी की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के उन कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से भी आपको धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से भाषण देने वाले उन सभी वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद व्यक्त करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का वर्णन करते हुए आपको यह बताया है कि सुदूर देशों के ये सभी लोग सहिष्णुता का भाव विभिन्न देशों में प्रचार-प्रसार को करने के लिए गौरान्वित होने का पक्ष रख सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में अपने आप में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने इस दुनिया को सहिष्णुता और  सार्वभौमिकता   दोनों की ही समान रूप से शिक्षा दी हैं। हम लोग सभी धर्मों के लिए केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं रखते हैं बल्कि  सभी धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश में जन्म लेने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के सभी धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को स्वीकार किया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए भी गर्व का अनुभव हो रहा हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को जगह दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत से आकर उसी साल शरण ली थी जिस साल उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से नष्ट कर दिया गया था। मेरे भाईयो मैं आप लोगों के समक्ष एक स्रोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिन पंक्तियों को मैं बचपन से दोहरा रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों लोग किया करते हैं-

अलग-अलग नदियाँ अलग-अलग मार्गो से आती हैं और अंत में एक विशाल समुद्र में ही मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभु! अलग-अलग रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से गुजरने वाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर सम्मिलित हो जाते हैं।उनके इन प्रेरणादायी विचारो को सुनकर सम्पुर्ण विश्व उनका मुरीद हो गया था|

पथिक

25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे। उसके बाद, उन्होंने पैदल ही पूरे भारत देश की यात्रा की। वह अपने सम्पुर्ण जीवन, देश विदेश की यात्रायें करते रहे और सभी जगह प्रेम का सन्देश फैलाते रहें|

हर एक पल को जीने की कला

उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जो कार्य कर गये, वे आने वाली हजारों-लाखो पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे और ऊर्जा का संचार करते रहेंगे|

सकरात्मक छवि

तीस वर्ष की आयु में ही स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म सभा में भारत की ओर से हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और हिन्दू धर्म को सार्वभौमिक पहचान दिलायी। गुरु श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने भी यह कहा था- "यदि आप संपूर्ण भारत देश को जानने की इच्छा रखते हैं तो स्वामी जी को पढ़िये, स्वामीविवेकानन्द को जानने का प्रयास करें। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक पायेंगे, कुछ भी नकारात्मक नहीं।"

ध्यान योगी

विवेकानंद के ओज से पूर्ण और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि दुनिया भर में है। अपने जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद के बारे में सम्पूर्ण  व्याख्या की और यह कहा कि एक और दूसरा स्वामी विवेकानन्द चाहिये, इस बात को समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक अपने सम्पूर्ण जीवन काल में क्या-क्या कार्य किया है। उनके शिष्यों के बताने के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान मग्न होने की दिनचर्या को नहीं बदला था और सुबह दो तीन घण्टे तक ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि में लीन हो गए। बेलूर में गंगा के तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी थी । इसी गंगा के तट के दूसरी ओर उनके परमपूज्य गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह साल पहले अन्तिम संस्कार हुआ था।

उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी याद में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और पूरे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार-प्रसार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।
स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) केवल एक सन्त ही नहीं, एक देशभक्त, एक वक्ता, एक  विचारक,एक लेखक और एक मानव-प्रेमी भी थे।

ऊर्जावान

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) में गज़ब की ऊर्जा थी| वह दिन रात काम करते रहते थे और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने आप को पुरी तरह समर्पित कर दिया करते थे| वह अपने जीवन काल में देश-विदेश घूमते रहे और कभी थकान ने उनको छुआ भी नहीं था| आराम करने से वह कोषो दूर थे| सम्पूर्ण भारत का भ्रमण तो उन्होंने पैदल ही कर दिया था|

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) के सुविचार (Swami Vivekananda Thoughts )

1)उठो, जागो और तब तक रुकने का नाम मत लो
जब तक आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये !!
स्वामी जी ने यह सबसे महतवपूर्ण सुविचार दिया था|

2) कुछ भी मत मांगो, बदले में किसी से कुछ मत चाहो | तुम्हे जो देना है, इस विश्व को दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आएगा-पर अभी उसके विषय में मत सोचो |

3) भारत को कम से कम अपने सहस्त्र तरुण मनुष्यों की बलि की जरुरत है, पर यह ध्यान रहे-मनुष्यों की बलि (दान) पशुओंकी कभी नहीं |

4) मुक्त वह है, जो दुसरों के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है|

5) महान बनो |त्याग बिना कोई भी महान कार्य नहीं हो सकता |

6) विकास ही जीवन है और संकोच करना ही मृत्यु | प्रेम ही मानव का विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच | इसीलिए प्रेम ही जीवन का एक अकेला ऐसा नियम है | जो प्रेम का भाव रखता है, वह जीवित है, जो स्वार्थी है, वह मर जाता है | अत: प्रेम के लिए ही प्रेम करो, क्योंकि प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है |

7) एक समय आता है, जब मनुष्य अनुभव करता है कि थोड़ी-सी मानव की सेवा करना लाखों जप,ताप, ध्यान से कहीं बढ़कर है |


8) यदि हम अपनी प्रार्थना में कहें कि भगवान ही हम सब लोगो के परम पिता हैं लेकिन अपने दैनिक जीवन में प्रत्येक मनुष्य को अपना भाई न समझें| तो फिर यह बात निरर्थक हैं|

9) वह इन्सान नास्तिक हैं जिसे खुद में विश्वास नहीं हैं|



11/27/2015

About Failure in Hindi

असफलता(Failure) की शक्ति

Failure
Failure
आप शायद यह सोच रहे होंगे कि कहीं ऊपर लिखा यह शीर्षक गलती से तो नहीं लिखा गया हैं| यहाँ पर असफलता की जगह सफलता लिखा होना चाहिए था| कहीं असफलता में भी कोई शक्ति हो सकती हैं| असफल व्यक्ति से तो कोई भी आदमी बात तक करना पसंद नहीं करता हैं| उसकी संगत में कोई भी नहीं रहना चाहता हैं| सफलता के बारे में तो सभी वाकिफ हैं लेकिन इस  असफलता के बारे में चर्चा क्यों| क्या असफलता भी महतवपूर्ण हो सकती हैं| हाँ, असफलता में भी बहुत शक्ति होती हैं| इस दुनिया में हर व्यक्ति सफल होने से पहले कई बार असफल हुआ हैं| सभी महान व्यक्तियों ने दीर्धकाल तक असफलता को सहन किया और जब इस असफलता की शक्ति की मदद से वह सफल हुए तो उन्हें दुनिया-जहान में पहचाना गया| उनकी चारों और जय-जयकार हुई और लोगो ने उनकी कद्र की|

असफलता की शक्ति को समझने की लिए यहाँ मै अमेरिकी इतिहास के एक ऐसे शख्स के जीवन पर रोशनी डालने का प्रयास करते हैं जिसने तमाम मुश्किलों के बावजूद, बार-बार असफल होने के बावजूद हिम्मत का साथ नहीं छोड़ा और अमेरिका के सर्वोच्च पद पर आसीन हो गए| उस शख्स का नाम अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) हैं | अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) को 1816 में उनके परिवार ने घर से निकल दिया था इसीलिए उन्हें बहुत छोटी सी उम्र में ही अपने जीवन यापन के लिए छोटी-छोटी नौकरी करनी पड़ी| 1818 में उनकी माँ की मृत्यु हो गयी थी| 1831 में उनका व्यवसाय पूर्ण रूप से समाप्त हो गया था| इसके बाद 1832 में अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) राज्य स्तर के चुनाव में खड़े हो गए| जहाँ उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा| चुनाव में हार के बाद विधि(Law) कॉलेज में दाखिला नहीं मिला| और वहां से भी निराशा ही हाथ लगी| एक साल बाद 1833 में अपने एक करीबी दोस्त से पैसा  लेकर नया व्यवसाय शुरू किया| लेकिन साल के अंत तक यह व्यवसाय भी नहीं चला और 17 साल का एक लम्बा समय, अपने दोस्त से लिया गया पैसा वापिस करने में लगा| लेकिन इन सभी असफलता के बाद भी अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) नहीं टूटे और 1834 में पुन: राज्य के चुनाव में खड़े हो गए और वहां से भी असफलता ही हाथ लगी| 1835 में विवाह बंधन में बंध गए लेकिन विवाह को अभी एक साल भी नहीं हुआ था और उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी| इस सदमे से 1836 में उन्हें लकवा मार गया और 6 महीने बिस्तर पर बिताने पड़े| 1838 में राज्य सभा में स्पीकर बनने के लिए आवेदन किया परन्तु सफलता नहीं मिली| इसके बाद 1840 में इलेक्टर  बनने के लिए प्रयास किया और वहां भी हार का सामना करना पड़ा|

1843 में कांग्रेस के लिए प्रयास  किया और फिर हार हुई| लेकिन इस हार के बावजूद 1846 में कांग्रेस के लिए फिर से प्रयास किया और इस बार जीत मिली, क्योंकि यह जीत कई असफलता के बाद मिली थी इसीलिए अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) ने इस जीत के महत्तव को समझा और ‘वाशिंगटन’ में  जाकर अच्छा काम किया| 1856 में उप राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित किये गए लेकिन इस बार सौ से भी कम वोट मिले और एक बार फिर असफलता का सामना करना पड़ा| 1858 में पुन: अमेरिका सीनेट के चुनाव में खड़े हुए और हार गए| इस हार को भी अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) ने असफलता नही समझा बल्कि अपने लक्ष्य की ओर बढ़ा हुआ एक और कदम समझा| और वह लक्ष्य था अमेरिका का सबसे उच्च पद, देश का राष्ट्रपति बनने का| 1860 में अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए और हमेशा के लिए अमर हो गए| इस विजय गाथा को, इस गौरव गाथा में हम असफलता की शक्ति का सजीव दर्शन करते हैं| एक अब्राहिम लिंकन(Abraham Lincoln) ही नहीं ऐसे हजारों सफल व्यक्ति हुए हैं जिन्होंने असफलता में भी अदभुत शक्ति के दर्शन किये और असफलता की सीढ़ी पर चढ़कर सफलता के शिखर को छु लिया|     

असफलता(Failure) में छुपे कीमती राज

असफलता(Failure) से अनुभव

जब आप किसी भी कार्य को करते हैं और उसमे असफल हो जाते हैं तो यह उस कार्य को करने में आपकी असफलता नहीं होती हैं क्योंकि उस कार्य को करते समय आपको कुछ न कुछ अनुभव जरूर प्राप्त होता हैं|

असफलता(Failure) सिखाती हैं

अगर आपको शीघ्र ही सफलता मिल जाए तो यह सफलता आपको पथ भ्रष्ट कर सकती हैं और हो सकता हैं कि आप इस सफलता से घमंडी न हो जाए| वह असफलता ही तो हैं जो आपको सफलता के सही मोल की पहचान कराती हैं| कई असफलता के बाद मिली सफलता को आप सहेज कर रखते हैं| असफलता तो एक गुरु की तरह हैं जो समय-समय पर आपका पथ-प्रदर्शन करती हैं|

आप असफल हुए बिना सफल नहीं हो सकते

बिना असफल हुए कोई भी सफल नहीं हो सकता हैं| कार्यो को सही ढंग से करने का कौशल प्रथम प्रयास में नहीं आता हैं| इसके लिये निरंतर अभ्यास कर असफलता को अपना साथी बनाकर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करना होता हैं|

असफलता(Failure) आत्मविश्वास  की जनक

असफलता आत्मविश्वास की जनक हैं| किसी कार्य को करते समय शुरुआत में मिली असफलता आपके आत्मविश्वास को बढ़ा देती हैं और कार्य को करने के लिए प्रेरित करती हैं|  

बड़ा सोचने को प्रेरित

असफलता(Failure) के माध्यम से हम बड़ा सोचने को मजबूर हो जाते हैं| और यह बड़ी सोच जादू की तरह काम करती हैं और हमें सफल होने का रास्ता दिखा देती हैं| क्योंकि जब कोई भी व्यक्ति असफल होता हैं तो वह यह सोचता हैं कि उसकी असफलता(Failure) का कारण क्या हैं| वह आखिर क्यों असफल हुआ| वह उसका कारण खोज लेता है और नयी ऊर्जा के साथ, पुरानी गलतियों को न दोहराते हुए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जुट जाता हैं|

धैर्य रखना सिखाती हैं

असफलता आपको धीरज रखना सिखाती हैं| क्योंकि जब आप असफलता के दौर में हैं और सफलता दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं देती हैं इस परिस्थिति में आप पूर्ण विश्वास के साथ बस मेहनत करते रहते हैं और धैर्यशील बन सफल होने का इंतजार करते हैं|

सफलता की सीढ़ी

हम असफलता को सफल होने, लक्ष्य तक पहुँचने की एक सीढ़ी की तरह मान सकते हैं| अगर मन में विश्वास और सच्ची लगन हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत आप को सफल होने से नहीं रोक सकती हैं| इसीलिए अगली बार जीवन में यदि आप कभी भी किसी कार्य को करने में असफल हो जाए तो घबराने या मायूस होने की जरूरत नहीं| बस यह समझ लीजिये कि आप सही दिशा में हैं हर असफलता के बाद आप कुछ न कुछ सीख तो रहे हैं | आपके ज्ञान कोष में कुछ न कुछ वृद्धि तो हो रही है| और सीखने का दूसरा नाम ही तो जिंदगी हैं| तो कमर कस लीजिये असफलता आपका दाहिना हाथ पकड़कर आपको सफलता की ओर ले जा रही हैं|   

Famous Failure Quote of Thomas A. Edison

“I have not failed. I have just found 10,000 ways that will not work”

11/25/2015

About Self Discipline in Hindi

अनुशासन(Discipline)

Disciplined
Discipline
किसी भी कार्य को करने में अनुशासन(Discipline) महत्वपूर्ण हैं| अगर आप अनुशासित(Disciplined) बन जाए बाकी चीज़े स्वत: ही होने लगती हैं और सफलता प्राप्ति का मार्ग सुगम होने लगता है| अनुशासन(Discipline) से तात्पर्य नियंत्रण से है| अपने जीवन को बांधकर एक दिशा की ओर लक्ष्य तक ले जाना ही अनुशासन(Discipline) हैं| हमारी जीवन प्रणाली भी पूर्णत: अनुशासित(Disciplined) होती हैं| हम जन्म लेते हैं और संपूर्ण जीवनकाल अपने जीवन का यापन करने के पश्चात हम मृत्यु को प्राप्त करते हैं| यह जीवन-मरण का चक्र भी मनुष्य के लिए पूरी तरह अनुशासित(Disciplined) होता है| हमारी श्वसन प्रणाली भी पूरी तरह अनुशासित(Disciplined) होती है| हम जीवन पर्यन्त नियंत्रित श्वास लेते रहते हैं और इस प्रक्रिया से जीवनीय शक्ति को प्राप्त करते हैं अगर हमारी सांसें(श्वास) अनियंत्रित हो जाए जीवन की डोर टूट जाएगी और हमारे जीवन का अंत हो जायेगा|

हम अपने चारो ओर के वातावरण में भी हम अनुशासन(Discipline) के दर्शन कर सकते हैं| सूर्य हर सुबह पूर्व की ओर से निकलकर और शाम के समय नियत समय पर पश्चिम दिशा में छिप जाता हैं| चंद्रमा भी हर रात्रि आकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कर देता है ऐसे ही आसमान में करोडो सितारे भी हर रात्रि आकाश को रोशन कर देते है| संपूर्ण ब्रह्माण्ड में हर गतिविधि अपने आप में अनुशासित(Disciplined) हैं हमारे चारो ओर जो प्राणवायु विचरित होती रहती हैं वह भी अनुशासित(Disciplined) हैं| ये नदिया, पहाड़, झीले, झरने, बारिश का होना, बर्फ का गिरना, मौसम का बदलना सभी गतिविधिया पूर्णत: नियंत्रित हैं, अनुशासित(Disciplined) हैं|

हम घर से निकलते है और बस अड्डे पर जाकर अपनी गन्तव्य स्थान पर जाने वाली बस की प्रतीक्षा करते हैं| निर्धारित समय पर बस आती हैं और हम अपने गन्तव्य की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं| अगर बस का आगमन नियंत्रित या अनुशासित(Disciplined) न हो तो क्या होगा क्या आप विश्वासपूर्वक अपने घर से कभी निकल पाएंगे क्या आप अपने निर्धारित स्थान के लिए यात्रा पर जा पाएंगे| अनुशासन(Discipline) के महत्व की हम कभी अनदेखी नहीं कर सकते| हवाई यात्रा, रेल यात्रा सब पुरी तरह अनुशासित(Disciplined) हैं और समय सारणी के अनुसार अपनी सेवाए हमें प्रदान करती रहती हैं| हम अपने घर में टेलीविज़न को चालू कर देते हैं कि हम अपना मनपसंद कार्यक्रम देख सके| अगर टीवी चैनल्स अनुशासित(Disciplined) न हो और समय पर कार्यक्रम प्रस्तुत न करें तो क्या हम अपना टीवी शो देख पाएंगे| नहीं हम अपने शो से वंचित रह जायेंगे| यह सब अनुशासन(Discipline) की शक्ति ही हैं जो हम अपनी इच्छानुसार अपने जीवन को चला सकते हैं|  

रेडियो पर या टीवी पर प्रसारित होने वाले सभी प्रोग्राम पूर्णत: अनुशासित(Disciplined) और नियंत्रित होकर हमें अपनी सेवाए प्रदान करते रहते हैं| खेतो में किसान, सीमा पर जवान सभी अनुशासन(Discipline) में रहकर देश की सेवा कर रहे हैं| किसी भी व्यवसाय से जुड़ा व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर देश के विकास में अपना योगदान दे रहा हैं| हमें अपने परिवार में भी अनुशासन(Discipline) में रहने की शिक्षा दी जाती हैं| और स्कूल में भी अनुशासित(Disciplined) रहने पर ही जोर दिया जाता हैं|   

अनुशासित(Disciplined) कैसे बने

उपरोक्त लेख के माध्यम से हम अनुशासन(Discipline) के महत्तव को पूर्णत: समझ चुके हैं| क्योंकि अनुशासन(Discipline) के बिना हमारा जीवन अधुरा हैं और अनुशासित(Disciplined) बनकर हम अपने जीवन में जो कुछ चाहे वह प्राप्त कर सकते हैं| कुछ बातो पर ध्यान देकर हम आसानी से अपने आप को अनुशासित(Disciplined) बना सकते हैं|

आदत में शुमार

अनुशासित(Disciplined) बनने के लिए सबसे पहले हमें अपनी जीवन शैली को नियंत्रित करना पड़ेगा और अपने लक्ष्यों से जुड़े महतवपूर्ण कार्यो को दिन-प्रतिदिन नियम से कर उन्हें अपनी आदत में शुमार करना पड़ेगा| ऐसा करने से हम स्वत: ही उन आवश्यक कार्यो को करने लगेंगे और लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग आसान हो जायेगा|

समय के पाबंद बने

हमें समय के पाबंद होना सीखना होगा| हर जगह निर्धारित समय से कम से कम पांच मिनट पहले पहुंचना चाहिए| अपने आप को किसी भी अन्य व्यक्ति से ‘लेट लतीफ़’ मत कहलवाओ| समय के पाबंद बने और अनुशासित(Disciplined) बने रहे|

तुरंत कार्यवाही

अनुशासित(Disciplined) बनने के लिए आपको कार्यो को करने के लिए तुरंत ही कार्यवाही करनी होगी| अगर आप कार्यों को करने में विलम्ब करते हैं तो कार्यो को करने का उत्साह कम होने लगता हैं और आप अनुशासित(Disciplined) नहीं बन पाएंगे|

आलस्य त्यागे

आलस्य का त्याग करने से भी आप अपने जीवन को अनुशासित(Disciplined) कर पाएंगे| इसिलिए आज ही आलस्य को त्याग कर पुरी तरह अनुशासित(Disciplined) हो अपने सभी आवश्यक कार्यों को पूर्ण करें|

अनुसरण करें

हमें हमेशा अच्छी चीजों का खोजी होना होगा जहाँ कहीं भी हमें अच्छाई दिखाई दे हमें तुरंत ही उसका अनुसरण करना चाहिए अपने जीवन में उस अच्छाई को लाना होगा| अच्छे लोगो का, अच्छी चीजों का अनुसरण कर हम अपने आप को अनुशासित(Disciplined) कर सकते हैं|

प्रकृति से सीखे अनुशासित(Disciplined) रहना  


आप प्रकृति से भी अपने जीवन को अनुशासित(Disciplined) करना सीख सकते हैं| कैसे एक छोटा सा बीज धीरे-धीरे अनुशासित(Disciplined) रहकर सर्दी, गर्मी, आंधी, तूफ़ान और बरसात की यातनाये सहन कर एक पेड़ बन जाता हैं और हमें छाया और फल देता हैं| इसी तरह से हमें भी सभी कठिनाइयों से पार पाकर अनुशासन(Discipline) में रहकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहिए|