12/06/2015

About Warren Buffett life in Hindi

वॉरेन बफेट(Warren Buffett)

Warren Buffett
Warren Buffett
वॉरेन बफेट(Warren Buffett) को सारी दुनिया में शेयर बाजार के बेताज बादशाह के नाम से जाना जाता हैं| उनका जन्म 30 अगस्त, 1930 को ओमाहा (Omaha), नेब्रास्का, संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था| वॉरेन बफेट(Warren Buffett) को शेयर बाज़ार (stock market) की दुनिया में सबसे बड़े निवेशकों में से एक माना जाता है वॉरेन वॉरेन बफेट(Warren Buffett) बर्कशायर हैथवे कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और सबसे बड़े शेयर धारक भी हैं। 11 फरवरी, 2008 को  62 अरब अमेरिकी डालर की कुल संपत्ति (net worth) के कारण उन्हें फोर्ब्स (Forbes) के द्वारा दुनिया का सबसे अमीर आदमी (richest person in  world) आंका गया था।

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) एक बहु चर्चित परोपकारी भी है। 2006 में उन्होनें अपनी संपत्ति का 83% बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (Bill & Melinda Gates Foundation) को  दान में दे दिया था। 2007 में उन्हें टाइम (Time) द्वारा संसार के 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली व्यक्तियों (100 Most Influential People in this world) में शामिल किया गया था।वह ग्रिनेल्ल कालेज (Grinnell College) के न्यासियों बोर्ड के सदस्य हैं।

वॉरेन वॉरेन बफेट(Warren Buffett) का प्रारंभिक जीवन

वॉरेन वॉरेन बफेट(Warren Buffett) के माता-पिता का नाम हावर्ड और लीला था। उनके पिता एक स्थानीय शेयर बाज़ार के दलाल थे| अपने पिता की वजह से ही वॉरेन बफेट(Warren Buffett) का बहुत कम उम्र में ही शेयर बाज़ार ज्ञान हो गया था। बेंजामिन ग्राहम (Benjamin Graham) जो की खुद शेयर बाज़ार के बहुत बड़े और सफल  निवेशक थे उनके प्रभावशाली परामर्शदाता थे। ग्राहम के विचारों नें वॉरेन बफेट(Warren Buffett) को इतना अधिक प्रभावित किया कि उन्होंने ग्राहम से शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से कोलंबिया प्रबंध स्कूल (Columbia Business School) में दाखिला ले लिया । ग्राहम से ही उन्होंने यह शिक्षा ली थी कि शेयर को एक व्यवसाय की भांति देखना, बाज़ार के उतार चढाव को अपने लाभ के लिए उपयोग करना और सुरक्षा की गुंजाईश बनी रहे इसकी इच्छा  रखना, ये सभी बाज़ार में निवेश करने के मूलभूत सिद्धांत हैं। वॉरेन वॉरेन बफेट(Warren Buffett) ने 1947 में वूड्रो विल्सन हाई स्कूल, वॉशिंगटन, डीसी से हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त की थी| नेब्रास्का विश्वविधालय (University of Nebraska) से 1950 में बी0 एस0 की शिक्षा ली थी| उसके बाद 1951 में कोलंबिया विश्वविधालय (Columbia University) से अर्थशास्त्र में एम्0एस0 उत्तीर्ण किया था|   

1951 से 1954 तक वॉरेन बफेट(Warren Buffett) ने फाल्क एंड कंपनी, ओमाहा (Omaha) में एक निवेश विक्रेता के रूप में नौकरी की थी| उसके बाद 1954 से 1956 तक ग्राहम-न्यूमैन कार्पोरेशन, न्यूयॉर्क नाम की कंपनी में प्रतिभूति विश्लेषक के पद पर कार्यरत थे| 1956 से 1969 तक वॉरेन बफेट(Warren Buffett) ने पार्टनरशिप लिमिटेड, ओमाहा नाम की कंपनी में सामान्य साझेदार के पद पर कार्य किया| 1970 से वर्तमान समय तक बर्कशायर हैथवे (Berkshire Hathaway Inc), ओमाहा नाम की कंपनी में अध्यक्ष (Chairman), सीईओ (CEO) के पद पर आसीन हुए| वॉरेन बफेट(Warren Buffett) ने 13 वर्ष की छोटी सी आयु में ही अपना पहला आयकर विवरण दायर कर दिया था|

1952 में 22 वर्ष की आयु में सुसन थोम्पसन (Susan Thompson) नाम की महिला से विवाह किया| 1954 में 24 वर्ष की आयु में बेंजामिन ग्राहम (Benjamin Graham) नें उन्हें 12000 डालर प्रतिवर्ष के प्रारंभिक वेतन पर अपनी कंपनी में नौकरी पर रख लिया| वॉरेन बफेट(Warren Buffett) और सुसन के तीन बच्चे हैं| जिनमे एक लड़की और दो लड़के हैं| 2006 में 75 वर्ष की आयु में वॉरेन बफेट(Warren Buffett) की पत्नी सुसन का निधन हो गया|

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) का नाम से आज दुनिया में हर एक व्यक्ति वाकिफ हैं| इस शेयर बाज़ार के बादशाह ने अपने अन्दर विधमान कुछ ख़ास शक्तियों के बल पर पूरे विश्व पर विजय पाई और दुनिया के सबसे अमीर तथा सबसे बड़े दानी होने का गौरव हासिल किये|

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) के अन्दर ये अभूतपूर्व शक्तियां निम्नलिखित हैं|

मितव्ययिता:-

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) की सबसे बड़ी शक्ति उनकी मितव्ययिता हैं| वॉरेन बफेट(Warren Buffett) बचत करने में विश्वास रखते हैं और फिजूलखर्ची करने से हमेशा बचते हैं| उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी अपना निवास स्थान नहीं बदला| वह आज भी अपनी वर्षो पुरानी कार ही चलाते हैं और इस कार को चलने के लिए वॉरेन बफेट(Warren Buffett) ने कोई ड्राईवर भी नहीं रखा हैं| वह इसको खुद ही ड्राइव करते हैं|

जोखिम उठाने की क्षमता:-

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) शेयर बाज़ार में बड़े-बड़े जोखिम उठाने पर विश्वास रखते हैं| वह बड़े-बड़े जोखिम बड़ी जल्दी-जल्दी उठा लेते हैं और परिणामस्वरूप उसका कई गुणा फल भी उन्हें मिलता हैं|

चतुर निवेशक:-

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) जोकि शेयर बाज़ार के बहुत बड़े निवेशक हैं बड़ी चतुराई से अपने शेयर में निवेश करते हैं| बाज़ार को समझने की जो कला उनके पास हैं वह बड़े-बड़े मुद्रा निवेशको से मीलो आगे हैं|

सादगी भरा जीवन:-

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) अपने पास सेल फ़ोन नहीं रखते हैं, उनकी मेज़ पर कोई कम्प्यूटर भी नहीं है और उनकी अपनी पुरानी कार  कैडिलैक डीटीएस (Cadillac DTS) के लिए कोई ड्राईवर भी नहीं रखा हैं| वह बहुत सादगी भरा  जीवन जीने में विश्वास रखते हैं|

परोपकारी:-

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) की गणना एक विशाल ह्रदय वाले परोपकारी इंसान के रूप में होती हैं| उन्होंने गरीबो के हित के लिए अपनी संपत्ति का एक बहुत बड़ा हिस्सा दान में दे दिया|

दानवीर: वॉरेन बफेट(Warren Buffett) इस दुनिया के पहले सबसे बड़े दानी हैं जिन्होंने अपनी संपत्ति का सबसे बड़ा भाग दान में दे दिया हो|

दूरदर्शी: वॉरेन बफेट(Warren Buffett) बहुत दूर की सोचते हैं और शेयर बाज़ार में वह अपनी दूरदर्शिता के बल पर बड़े-बड़े दाव लगते हैं|  

ऊर्जावान: वॉरेन बफेट(Warren Buffett) हमेशा ऊर्जा से भरे होते हैं| उन्होंने भरपूर ऊर्जा से जीवन भर कठिन परिश्रम किया और आज 85 वर्ष की आयु में भी उनकी ऊर्जा किसी नौजवान से कम नहीं हैं|

शिष्य:

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) अपने गुरु बेन्जेमिन ग्राहम के आज्ञाकारी शिष्य थे| इसी कारणवश उन्होंने अपने गुरु से शेयर बाज़ार की सभी बारीकियां बड़ी तलीनता से सीख ली|

पुरानी चीजों से लगाव

वॉरेन बफेट(Warren Buffett) को अपनी सभी पुरानी चीजों से बहुत लगाव हैं| यधपि उनके पास धन की कोई भी कमी नहीं हैं, पर आज भी वह अपनी पुरानी खरीदी हुई सभी चीजों को अपने पास संजोये हुए हैं|

आओ हम सब वॉरेन बफेट(Warren Buffett) की इन शक्तियों पर गंभीरता से विचार कर अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करें और इन शक्तियों के बल पर अपने आप को सफल व्यक्तियों की कतार में खड़ा होने का भरसक प्रयास करें|


12/02/2015

About Bhagat Singh life in Hindi



सरदार भगत सिंह(Bhagat Singh)

Bhagat Singh
Bhagat Singh
सरदार भगत सिंह(Bhagat Singh) का नाम हमारे देश की अमर हो गए सभी शहीदों में बड़े ही आदर से लिया जाता है। भगत सिंह(Bhagat Singh) जी का जन्म 28 सितंबर 1907 में पंजाब के लायलपुर जिले में बंगा ग्राम (जो देश के विभाजन के बाद अब पाकिस्तान में है) के एक देशभक्त से ओत-प्रोत सिक्ख परिवार में हुआ था| उनके पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह और माताजी का नाम विध्यावती कौर था।

वैसे तो यह एक सिक्ख परिवार था परन्तु उनके परिवार ने आर्य समाज के विचार को पुरी तरह से अपना हुआ था। उनके परिवार पर आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द की विचारधारा का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। जब भगत सिंह(Bhagat Singh) का जन्म हुआ था तो उस समय उनके पिता सरदार किशन सिंह जी और उनके दो चाचा अजीतसिंह तथा स्वर्णसिंह अंग्रेजों की जेल में बंद थे| जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ उसी दिन उनके पिताजी और चाचाजी की भी जेल से रिहाई हो गयी। इस तरह उस दिन उनके परिवार में दो-दो खुशियाँ आई|

भगतसिंह के जन्म के पश्चात उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला' रख दिया  था। जिसका तात्पर्य 'अच्छे भाग्य वाला' होने से ही हैं। बाद में उनका नाम भागो वाला से बदलकर 'भगतसिंह' रख दिया गया| वह 14 वर्ष की छोटी सी आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में सक्रीय थे। उन्होंने नौवीं की परीक्षा डी.ए.वी. स्कूल से पास की थी। 1923 में जब उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की तब उनके परिवार वालो ने उनकी शादी करने की सोची लेकिन भगत सिंह(Bhagat Singh) तो अपने  जीवन को देश की सेवा में समर्पित कर चुके थे इसीलिए वह लाहौर से भागकर कानपुर आ गए थे । भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस और उत्साह के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार से मुकाबला किया उनका यह योगदान भारतवासी कभी भी नहीं भुला सकते हैं|

उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के भारतीयों पर अत्याचार को कभी भी सहन नहीं किया था| अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुये “जलियांवाला बाग हत्याकांड” ने भगत सिंह(Bhagat Singh) की सोच पर बहुत गहरा प्रभाव डाला और भगत सिंह(Bhagat Singh) लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर भारत की आजादी के लिए कुछ नौजवानों को एकत्रित कर ‘नौजवान भारत सभा’ नाम के एक संगठन की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' जी के साथ-साथ चार क्रांतिकारियों को फांसी व सोलह  अन्य क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजा से भगत सिंह(Bhagat Singh) इतने ज्यादा परेशान हो गए कि वह चन्द्रशेखर आजाद की पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उस पार्टी को एक नया नाम दिया 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य देश सेवा के लिए सेवा का भाव,त्याग और कष्ट झेल सकने वाले नौजवान तैयार करना था।

इसके बाद भगत सिंह(Bhagat Singh) ने एक और क्रन्तिकारी राजगुरु के साथ मिल 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक जे पी सांडर्स को गोली मार दी। इस कार्रवाई में क्रां‍तिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनका पूरा सहयोग दिया। इसके बाद भगत सिंह(Bhagat Singh) ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड़, दिल्ली में स्थित ब्रिटिश भारत की असेम्बली के अन्दर 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को नींद से जगाने के लिए बम फैंके। इन बम को फैकने का मतलब किसी की जान लेना नहीं था बल्कि अंग्रेजो को अपने हौसलों से अवगत करना मात्र था| और उन्हें यह बताना था कि अब भारतवासी स्वतंत्र होना चाहते है| बम फेंकने के बाद वहीं पर भगत सिंह(Bhagat Singh) और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने अपने आप को गिरफ्तार भी करा लिया था।

इसके बाद'लाहौर षडयंत्र' के इस मुकदमें में भगतसिंह को और उनके दो अन्य साथियों, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को एक साथ फांसी दे दी गयी थी। यह भी माना जाता है कि फांसी के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गयी  थी लेकिन लोगों के आन्दोलन से डरी हुई सरकार ने 23-24 मार्च की रात में ही इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी और रात के अंधेरे में ही सतलज नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी करवा दिया। उनके परिवार वालो को भी उनसे मिलने नहीं दिया था|
भगत सिंह(Bhagat Singh) ने अपने प्राणों की चिंता किये बिना हस्ते-हस्ते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था| उन्होंने जो कार्य हमारे देश के लिए किया वह ऐसे ही संभव नहीं था उसे करने के लिए भगत सिंह(Bhagat Singh) में कुछ अदभुत शक्तियां विधमान थी| 

इन शक्तियों का वर्णन निम्नलिखित हैं|

निडर:

भगत सिंह(Bhagat Singh) अपने बचपन से ही बहुत निडर थे| अपने निडर स्वभाव की वजह से ही उन्होंने बहुत कम आयु में ही अंग्रेजी हुकुमुत से लोहा ले लिया था| एक बार भगत सिंह(Bhagat Singh) खेतो में अपने पिता के साथ गए और खेत की मिट्टी में कुछ लकड़ियों के टुकड़े लगाने लगे| भगत सिंह(Bhagat Singh) को ऐसा करते देख उनके पिता ने पूछा कि भगत आप यह क्या कर रहे हो तो भगत सिंह(Bhagat Singh) का जवाब था “पिताजी मै बन्दूके बो(रोप) रहा हूँ” उन्हें उनके बचपन से ही कभी भी भय ने नहीं छुआ था| जब उन्हें फांसी पर लटकाने के लिए ले जाया जा रहा था तब भी उनके चेहरे पर चिंता के भाव बिलकुल भी नहीं थे बल्कि वह तो मात्रभूमि के लिए हस्ते-गाते सूली पर लटक गए थे|

देशप्रेमी:

भगत सिंह(Bhagat Singh) को अपने देश, अपनी मात्रभूमि से बचपन से बहुत प्रेम था| ऐसा इसीलिए भी था क्योंकि भगत सिंह(Bhagat Singh) के चाचा और पिता दोनों भी देश भक्त थे और अंग्रेजी हुकूमत से अपने देश को आजाद करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे| देश प्रेम तो उन्हें विरासत में मिला था| जलियावाला बाग हत्याकांड ने तो उनका ह्रदय पुरी तरह परिवर्तित कर दिया था और इस घटना के तुरंत बाद तो अंग्रेजो से अपना देश आजाद करवाने के लिए उनका खून खोलने लगा था| वे अंग्रेजो के अपनी देश की भूमि पर कदम रखने मात्र से ही क्रोधित हो जाते थे|     

शायर:

भगत सिंह(Bhagat Singh) का एक और गुण शायरी लिखना भी था| वे खाली समय में देश प्रेम से ओत-प्रोत शायरी लिखा करते थे| जब भगत सिंह(Bhagat Singh) बंदी बनाकर जेल में बंद हो गए थे तो वे जेल में भी शायरी लिखा करते थे| फाँसी के कुछ दिन पहले 3 मार्च 1931 को अपने भाई कुलतार सिंह को भेजे गए एक ख़त में भगत सिंह(Bhagat Singh) ने यह शायरी लिखी थी -

उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।

व्यवहार कुशल:

भगत सिंह(Bhagat Singh) एक व्यवहार कुशल व्यक्ति थे| वह अपने देश के बच्चे-बच्चे से प्यार करते थे| वह बच्चे बड़ो सभी भी एक दम घुल-मिल जाते थे| जो व्यक्ति उनसे एक बार मिल लिया वह उन्हें और उनके अच्छे व्यवहार को कभी भी नहीं भुला था| उनकी व्यवहार कुशलता की वजह से जेल में भी उनके बहुत से मित्र बन गए और दुश्मन भी उनके दोस्त बन गए|

मोह माया से दूर:

भगत सिंह(Bhagat Singh) मोह माया से कोसो दूर थे| उन्हें मोह माया ने कभी भी नहीं छुआ था| भगत सिंह(Bhagat Singh) भी अपने घर में रहकर आराम की जिंदगी बिता सकते थे पर उन्होंने सभी मोह माया को भंग कर अपने देश को आजादी दिलाने के लिए असंख्य कष्ट सहे| उनके परिवार के लोग उनका विवाह भी करना चाहते थे परन्तु भगत सिंह(Bhagat Singh) जी ने यह कहकर इंकार कर दिया था कि मेरा विवाह तो पहले ही अपने देश की आजादी से हो चुका है और में उसको हासिल करके ही रहूँगा|

उच्च विचार:

भगत सिंह(Bhagat Singh) उच्चे विचारो के धनी थे| यधपि उस समय में जब हमारा देश पुरी तरह अंग्रेजो के अधीन था| कुछ भी ऐसी सम्भावनाये नहीं दिखाई दे रही थी की देश कभी आजाद भी होगा| लेकिन उस कठिन समय में भी भगत सिंह(Bhagat Singh) जी ने उच्च विचारो का साथ कभी नहीं छोड़ा था| उन्होंने जेल में भी अपने विचारो का साथ कभी नहीं छोड़ा| वह समय-समय पर जेल प्रशासन से अपने और अन्य जेल कैदियों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ते रहते थे | और कैदियों को अच्छा खाना, पढने के लिए पुस्तके या अख़बार आदि मुहैया करने की मांग करते रहते थे|

मृत्यु का भी भय नहीं

भगत सिंह(Bhagat Singh) अपने जीवनकाल में कभी भी मृत्यु से भयभीत नहीं हुए थे| वह अपने हक के लिए अंग्रेजी हुकूमत से न जाने कितनी बार भीड़ गए| अंग्रेज भी इस बात को जानने लगे थे कि भगत सिंह(Bhagat Singh) को अपने प्राणों की जरा भी चिंता नहीं हैं| अंग्रेज भगत सिंह(Bhagat Singh) से बहुत डरने लगे थे इसीलिए उन्होंने भगत सिंह(Bhagat Singh) को फांसी पर लटका दिया था| 

लोकप्रिय:

भगत सिंह(Bhagat Singh) एक लोकप्रिय क्रन्तिकारी थे | दुश्मन हो या दोस्त सभी के भगत सिंह(Bhagat Singh) प्रिय थे| जब भगत सिंह(Bhagat Singh) को फांसी हुई थी तो हजारों-लाखों की तादाद में लोग जेल के बहार मौजूद थे|

अलग-अलग भाषाओ का ज्ञान:

भगत सिंह(Bhagat Singh) को कई भाषाओ का ज्ञान था| जिनमे हिन्दी भाषा ,उर्दू भाषा ,पंजाबी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के अलावा बांग्ला भाषा प्रमुख हैं|

जुनूनी शख्सियत:

भगत सिंह(Bhagat Singh) की शख्सियत एक जुनूनी व्यक्ति की थी| देश की आजादी उन पर सिर चढ़ कर बोलती थी| उन्हें तो बस एक ही जूनून था की उनका देश आजाद हो, उनकी मात्रभूमि पराधीनता की बेडियो में जकड़ी न रहे  चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े|  

तुरंत निर्णय लेने की क्षमता:


भगत सिंह(Bhagat Singh) में एक और शक्ति थी जो उन्हें दुसरे क्रांतिकारियों से अलग खड़ा करती थी| वह थी उनकी तुरंत निर्णय लेने की क्षमता| उन्होंने अपने जीवनकाल में कई बार तुरंत निर्णय लिए थे जैसे- विवाह न करने का निर्णय, लाला लाजपत रॉय जी की हत्या का बदला लेना, असेम्बली में बम फेकना हो| उन्होंने यह सब निर्णय तुरंत ले अंग्रेजी सरकार के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी थी और अंग्रेजो की रातो की नींद उड़ा दी थी| 

11/29/2015

About Swami Vivekananda life in Hindi

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda)

Swami Vivekananda
Swami Vivekananda
आज हम एक ऐसे व्यक्ति की शक्तियों के विषय में जानेंगे जो एक ऐसी अदभुत शक्ति के पुंज थे| जिन्होंने अपने विचारो के बल पर अपना प्रभुत्व पुरे विश्व पर बनाया था| जो इस दुनिया में शारीरिक रूप से तो बहुत कम समय के लिए जीवित रहे थे लेकिन पुरी दुनिया के दिलो में सदियों-सदियों तक जीवित रहेंगे| वह हमारे साथ कल भी थे, आज भी हैं और हमेशा रहेंगे| उस महान शक्ति का नाम स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) हैं| उनका नाम लेने मात्र से ही आपकी अपनी शक्ति स्वत: ही दोगुनी हो जाती हैं| उनके बारे में आप जितना अधिक जानेंगे उतना ही अपने जीवन के लक्ष्यों को अपने करीब पाएंगे |

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) का संक्षिप्त इतिहास (Brief History of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जी का जन्म 12 जनवरी 1863  को कलकत्ता(अब कोलकाता), भारत में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका नाम उनके माता-पिता ने नरेन्द्रनाथ दत्त रखा था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक जाने-माने वकील थे। विश्वनाथ दत्त जी पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने  में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी भाषा का अध्यन्न कराकर पश्चिमी सभ्यता का  अनुसरण करने को प्रेरित करते थे। परन्तु उनकी माता भुवनेश्वरी देवी इसके पूर्णत: विपरीत थी| वह एक धार्मिक विचारों का अनुसरण करने वाली धार्मिक महिला थीं। उनकी माता अपना अधिकांश समय भगवान शिवा की भक्ति में बिताती थी। नरेन्द्र अपने बचपन से ही एक कुशाग्र बुद्धि वाले बालक थे और परमेश्वर के बारे में जानने को जिज्ञासु थे। इसलिए वह पहले ब्रह्म समाज में सम्मिलित हो गये परन्तु वहाँ उनके मन को संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई। वे वेदान्त और योग को पश्चिम सभ्यता में प्रचारित करना  चाहते थे। 1879 में  स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश लिया था| उसके बाद 1880 में जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश लिया| नवंबर 1881 में स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) अपने गुरु श्री  रामकृष्ण परमहंस जी पहली बार मिले थे| 1882 से 1886  रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे| 1884 में उनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का सम्पूर्ण भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। 1884 में ही स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने स्नातक की परीक्षा उतीर्ण की| 16 अगस्त 1886 को उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी का निधन हो गया था| अपने गुरु के निधन के पश्चात 1886  में स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने  वराहनगर मठ की स्थापना की तथा जनवरी 1887 में  वराह नगर मठ में ही संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा भी ली थी| 1890 से 1893 के मध्य  एक परिव्राजक के भारत देश में भ्रमण करते रहे| 31 मई 1893 को स्वामी जी  बम्बई(अब मुम्बई) से अमेरिका देश की लिए रवाना हो गए| 25 जुलाई 1893 को  वैंकूवर, कनाडा पहुँचे तथा 30 जुलाई 1893 को शिकागो देश में पहुँच गए| माह अगस्त 1893 में  हार्वर्ड विश्वविधालय के प्रो॰ जॉन राइट से मुलाकात की थी| 11 सितम्बर 1893 में  विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान किया था और 27 सितम्बर 1893 में विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान किया| 16 मई 1894 में  हावर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण किया और नवंबर 1894, न्यूयॉर्क में वेदान्त समिति की स्थापना की| जनवरी 1895  न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं को संचालित किया और अगस्त 1895 में  पेरिस के लिए रवाना हो गए| अक्टूबर 1895 में  लन्दन में व्याख्यान किया| 6 दिसम्बर 1895 वापस न्यूयॉर्क आ गए| 1895 से 1896 एक साल न्यूयार्क और लन्दन में समय बिताया| 1896 में पुन: भारत देश आ गए| 15 जनवरी 1897 को  श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो चले गए| जनवरी, 1897  में रामेश्वरम में  असंख्य लोगो के सामने भाषण दिया| 6 से 15 फ़रवरी 1897 के मध्य मद्रास(अब चेन्नई) में रहे| 1 मई 1897 को स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की| 19 मार्च 1899 में  मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना की और फिर एक बार पश्चिमी देशो की यात्रा पर निकल गए| 31 जुलाई 1899 को  न्यूयॉर्क में पुन: चले गए| 22 फ़रवरी 1900  में  सैन फ्रांसिस्को में वेदान्त समिति की स्थापना की थी| जून 1900  में  न्यूयॉर्क में आखिरी बार कक्षा दी और 26 जुलाई 1900 को  यूरोप के लिए रवाना हो गए| 24 अक्टूबर 1900 को स्वामी जी ने  विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र जैसे कई देशों की यात्रा की और 26 नवम्बर 1900 में भारत आ गए| 9 दिसम्बर 1900 को  बेलूर मठ आ गए| 1901 में उन्होंने  मायावती ,पूर्वी बंगाल और असम की यात्रा की| 1902 में बोध गया और वाराणसी की यात्रा कर बेलूर मठ वापिस आ गए| 

4 जुलाई 1902 को विवेकानंद जी प्रात: जल्दी उठे और बेलूर मठ के पूजा कक्ष में पूजा करने के लिए चले गये और बाद में   लगभग तीन घंटो तक योग क्रियाये भी की| उन्होंने अपने छात्रो को शुक्ल-यजुर्वेद, संस्कृत और योग साधना के विषय में पढाया बाद में अपने सहशिष्यों के साथ चर्चा की और रामकृष्ण मठ में वैदिक महाविधालय बनाने के विषय में विचार विमर्श करने लगे| शाम सात बजे विवेकानंद अपने कमरे में गये, और अपने शिष्य को कहा कि उनकी शांति को भंग न किया जाए, और नौ बजे रात्री को योग ध्यान करते समय ही उनकी मृत्यु हो गयी| उनके शिष्यों के अनुसार उनकी महासमाधि का कारण ब्रह्मरंधरा (एक प्रकार की योग क्रिया) था| उन्होंने अपनी मृत्यु के बारे में पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि वे चालीस वर्षो  से अधिक नहीं जी पाएंगे| बेलूर की गंगा नदी में उनके शव को चन्दन की लकडियो से अग्नि दे दी गयी|

स्वामी जी को अपना शरीर त्यागे सौ वर्ष से अधिक का समय हो गया है| लेकिन उनके प्रेरक विचारो से मिलने वाली शक्ति करोडो लोगो में आज भी प्राणवायु का कार्य कर रही हैं| आओ हम सब उनकी शक्तियों पर विचार करें और इन शक्तियों से प्रेरणा लेकर अपना जीवन सफल बनाये| स्वामी जी की यह शक्तियां निम्नलिखित हैं|

कुशाग्र बुद्धि

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जी एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे| वह अपनी उम्र के बच्चो से कहीं आगे थे| कभी-कभी स्वामी जी ऐसे सवाल पूछा किया करते थे| जिनका जवाब बड़े-बड़े विद्वानों के बस की बात नहीं थी| यधपि स्वामी जी उनतालीस वर्ष की अल्प आयु में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे पर इस सिमित समय में स्वामी जी ने जो कार्य किये वह तो कोई व्यक्ति दो सौ वर्षो में भी आसानी से न कर पाए|

अथिति देवो: भव

जब स्वामी जी के पिता की मृत्यु हुई तो उनके घर की दशा बहुत ही खराब थी। लेकिन इस गरीबी के समय में भी स्वामी जी बहुत बड़े अतिथि-सेवी थे। वे स्वयं भूखे-प्यासे रहकर भी अतिथि को भोजन कराते थे| वह खुद बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते रहते लेकिन अपने घर आये मेहमान को कभी भी कष्ट नहीं उठाने दिया। स्वामी जी अपने अतिथि में भगवान के दर्शन किया करते थे|

गुरु भगवान समतुल्य

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने गुरुजी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया था। उनके गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस का शरीर अत्यन्त जीर्ण हो गया था। उनके गुरुदेव के शरीर को त्यागने के अंतिम दिनों में स्वामी जी के घर की हालत बहुत ही नाजुक थी| लेकिन स्वामी जी ने कभी भी स्वयं के भोजन की चिन्ता नहीं की और गुरु की सेवा में ही लगे रहते थे|
एक बार गुरुदेव के एक शिष्य ने गुरुदेव की सेवा में घृणा का भाव दिखाया| यह सब देखकर स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जी को बहुत ही क्रोध आ गया। वे अपने उस सह शिक्षार्थी को सेवा का पाठ पढ़ाते थे और स्वयं गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति अगाध प्रेम दिखाते हुए उनके बिस्तर के पास खून, कफ आदि से भरी हुई थूकदानी को उठाकर फेंकते थे। और गुरु जी के आसपास गंदगी को साफ़ किया करते थे| उन्होंने जैसी निस्वार्थ सेवा अपने गुरु के लिए की, ऐसी सेवा तो कोई अपने माँ-बाप की भी नहीं करता हैं| उन्होंने गुरु की सेवा के लिए अपने आप को पुरी तरह समर्पित कर दिया था|  

बड़े-बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने में विश्वास  

विवेकानन्द बड़े-बड़े सपने देखा करते थे। उन्‍होंने एक ऐसे उच्च समाज की कल्‍पना की थी जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मानव के बीच में कोई भी भेद न रहे। उन्‍होंने वेदान्त के सिद्धान्तों को भी इसी रूप में रखा था।

सन्यासी

स्वामी जी ने एक सन्यासी का जीवन जिया था| उन्होंने कभी विवाह नहीं किया था और अपना पूरा जीवन अपने गुरु, अपने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था|

कुशल वक्ता

स्वामी जी ओज से पूर्ण भाषण देने में पुरी तरह सक्षम थे| जब स्वामी जी ने अमेरिका में भाषण दिया था तो पूरे विश्व ने उसे सह्रदय स्वीकार किया था| उस भाषण का कुछ अंश निम्नलिखित हैं|

मेरे प्यारे अमेरीकी भाइयो और बहनों!

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम सब लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार को प्रकट करते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष और उत्साह से भर रहा हैं। इस सम्पूर्ण संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से भी मैं आपको सहर्ष धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की जननी की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के उन कोटि-कोटि हिन्दुओं की ओर से भी आपको धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से भाषण देने वाले उन सभी वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद व्यक्त करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का वर्णन करते हुए आपको यह बताया है कि सुदूर देशों के ये सभी लोग सहिष्णुता का भाव विभिन्न देशों में प्रचार-प्रसार को करने के लिए गौरान्वित होने का पक्ष रख सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में अपने आप में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने इस दुनिया को सहिष्णुता और  सार्वभौमिकता   दोनों की ही समान रूप से शिक्षा दी हैं। हम लोग सभी धर्मों के लिए केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं रखते हैं बल्कि  सभी धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश में जन्म लेने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के सभी धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को स्वीकार किया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए भी गर्व का अनुभव हो रहा हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को जगह दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत से आकर उसी साल शरण ली थी जिस साल उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से नष्ट कर दिया गया था। मेरे भाईयो मैं आप लोगों के समक्ष एक स्रोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिन पंक्तियों को मैं बचपन से दोहरा रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों लोग किया करते हैं-

अलग-अलग नदियाँ अलग-अलग मार्गो से आती हैं और अंत में एक विशाल समुद्र में ही मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभु! अलग-अलग रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से गुजरने वाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर सम्मिलित हो जाते हैं।उनके इन प्रेरणादायी विचारो को सुनकर सम्पुर्ण विश्व उनका मुरीद हो गया था|

पथिक

25 वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए थे। उसके बाद, उन्होंने पैदल ही पूरे भारत देश की यात्रा की। वह अपने सम्पुर्ण जीवन, देश विदेश की यात्रायें करते रहे और सभी जगह प्रेम का सन्देश फैलाते रहें|

हर एक पल को जीने की कला

उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) जो कार्य कर गये, वे आने वाली हजारों-लाखो पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे और ऊर्जा का संचार करते रहेंगे|

सकरात्मक छवि

तीस वर्ष की आयु में ही स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) ने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म सभा में भारत की ओर से हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और हिन्दू धर्म को सार्वभौमिक पहचान दिलायी। गुरु श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने भी यह कहा था- "यदि आप संपूर्ण भारत देश को जानने की इच्छा रखते हैं तो स्वामी जी को पढ़िये, स्वामीविवेकानन्द को जानने का प्रयास करें। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक पायेंगे, कुछ भी नकारात्मक नहीं।"

ध्यान योगी

विवेकानंद के ओज से पूर्ण और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि दुनिया भर में है। अपने जीवन के अन्तिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद के बारे में सम्पूर्ण  व्याख्या की और यह कहा कि एक और दूसरा स्वामी विवेकानन्द चाहिये, इस बात को समझने के लिये कि इस विवेकानन्द ने अब तक अपने सम्पूर्ण जीवन काल में क्या-क्या कार्य किया है। उनके शिष्यों के बताने के अनुसार जीवन के अन्तिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान मग्न होने की दिनचर्या को नहीं बदला था और सुबह दो तीन घण्टे तक ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि में लीन हो गए। बेलूर में गंगा के तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी थी । इसी गंगा के तट के दूसरी ओर उनके परमपूज्य गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह साल पहले अन्तिम संस्कार हुआ था।

उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी याद में वहाँ एक मन्दिर बनवाया और पूरे विश्व में विवेकानन्द तथा उनके गुरु रामकृष्ण के सन्देशों के प्रचार-प्रसार के लिये 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना की।
स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) केवल एक सन्त ही नहीं, एक देशभक्त, एक वक्ता, एक  विचारक,एक लेखक और एक मानव-प्रेमी भी थे।

ऊर्जावान

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) में गज़ब की ऊर्जा थी| वह दिन रात काम करते रहते थे और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने आप को पुरी तरह समर्पित कर दिया करते थे| वह अपने जीवन काल में देश-विदेश घूमते रहे और कभी थकान ने उनको छुआ भी नहीं था| आराम करने से वह कोषो दूर थे| सम्पूर्ण भारत का भ्रमण तो उन्होंने पैदल ही कर दिया था|

स्वामी विवेकानन्द(Swami Vivekananda) के सुविचार (Swami Vivekananda Thoughts )

1)उठो, जागो और तब तक रुकने का नाम मत लो
जब तक आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये !!
स्वामी जी ने यह सबसे महतवपूर्ण सुविचार दिया था|

2) कुछ भी मत मांगो, बदले में किसी से कुछ मत चाहो | तुम्हे जो देना है, इस विश्व को दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आएगा-पर अभी उसके विषय में मत सोचो |

3) भारत को कम से कम अपने सहस्त्र तरुण मनुष्यों की बलि की जरुरत है, पर यह ध्यान रहे-मनुष्यों की बलि (दान) पशुओंकी कभी नहीं |

4) मुक्त वह है, जो दुसरों के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है|

5) महान बनो |त्याग बिना कोई भी महान कार्य नहीं हो सकता |

6) विकास ही जीवन है और संकोच करना ही मृत्यु | प्रेम ही मानव का विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच | इसीलिए प्रेम ही जीवन का एक अकेला ऐसा नियम है | जो प्रेम का भाव रखता है, वह जीवित है, जो स्वार्थी है, वह मर जाता है | अत: प्रेम के लिए ही प्रेम करो, क्योंकि प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है |

7) एक समय आता है, जब मनुष्य अनुभव करता है कि थोड़ी-सी मानव की सेवा करना लाखों जप,ताप, ध्यान से कहीं बढ़कर है |


8) यदि हम अपनी प्रार्थना में कहें कि भगवान ही हम सब लोगो के परम पिता हैं लेकिन अपने दैनिक जीवन में प्रत्येक मनुष्य को अपना भाई न समझें| तो फिर यह बात निरर्थक हैं|

9) वह इन्सान नास्तिक हैं जिसे खुद में विश्वास नहीं हैं|