12/02/2015

About Bhagat Singh life in Hindi



सरदार भगत सिंह(Bhagat Singh)

Bhagat Singh
Bhagat Singh
सरदार भगत सिंह(Bhagat Singh) का नाम हमारे देश की अमर हो गए सभी शहीदों में बड़े ही आदर से लिया जाता है। भगत सिंह(Bhagat Singh) जी का जन्म 28 सितंबर 1907 में पंजाब के लायलपुर जिले में बंगा ग्राम (जो देश के विभाजन के बाद अब पाकिस्तान में है) के एक देशभक्त से ओत-प्रोत सिक्ख परिवार में हुआ था| उनके पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह और माताजी का नाम विध्यावती कौर था।

वैसे तो यह एक सिक्ख परिवार था परन्तु उनके परिवार ने आर्य समाज के विचार को पुरी तरह से अपना हुआ था। उनके परिवार पर आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द की विचारधारा का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। जब भगत सिंह(Bhagat Singh) का जन्म हुआ था तो उस समय उनके पिता सरदार किशन सिंह जी और उनके दो चाचा अजीतसिंह तथा स्वर्णसिंह अंग्रेजों की जेल में बंद थे| जिस दिन भगतसिंह का जन्म हुआ उसी दिन उनके पिताजी और चाचाजी की भी जेल से रिहाई हो गयी। इस तरह उस दिन उनके परिवार में दो-दो खुशियाँ आई|

भगतसिंह के जन्म के पश्चात उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला' रख दिया  था। जिसका तात्पर्य 'अच्छे भाग्य वाला' होने से ही हैं। बाद में उनका नाम भागो वाला से बदलकर 'भगतसिंह' रख दिया गया| वह 14 वर्ष की छोटी सी आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में सक्रीय थे। उन्होंने नौवीं की परीक्षा डी.ए.वी. स्कूल से पास की थी। 1923 में जब उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की तब उनके परिवार वालो ने उनकी शादी करने की सोची लेकिन भगत सिंह(Bhagat Singh) तो अपने  जीवन को देश की सेवा में समर्पित कर चुके थे इसीलिए वह लाहौर से भागकर कानपुर आ गए थे । भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस और उत्साह के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार से मुकाबला किया उनका यह योगदान भारतवासी कभी भी नहीं भुला सकते हैं|

उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के भारतीयों पर अत्याचार को कभी भी सहन नहीं किया था| अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुये “जलियांवाला बाग हत्याकांड” ने भगत सिंह(Bhagat Singh) की सोच पर बहुत गहरा प्रभाव डाला और भगत सिंह(Bhagat Singh) लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई को छोड़कर भारत की आजादी के लिए कुछ नौजवानों को एकत्रित कर ‘नौजवान भारत सभा’ नाम के एक संगठन की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' जी के साथ-साथ चार क्रांतिकारियों को फांसी व सोलह  अन्य क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजा से भगत सिंह(Bhagat Singh) इतने ज्यादा परेशान हो गए कि वह चन्द्रशेखर आजाद की पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उस पार्टी को एक नया नाम दिया 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य देश सेवा के लिए सेवा का भाव,त्याग और कष्ट झेल सकने वाले नौजवान तैयार करना था।

इसके बाद भगत सिंह(Bhagat Singh) ने एक और क्रन्तिकारी राजगुरु के साथ मिल 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक जे पी सांडर्स को गोली मार दी। इस कार्रवाई में क्रां‍तिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनका पूरा सहयोग दिया। इसके बाद भगत सिंह(Bhagat Singh) ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड़, दिल्ली में स्थित ब्रिटिश भारत की असेम्बली के अन्दर 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को नींद से जगाने के लिए बम फैंके। इन बम को फैकने का मतलब किसी की जान लेना नहीं था बल्कि अंग्रेजो को अपने हौसलों से अवगत करना मात्र था| और उन्हें यह बताना था कि अब भारतवासी स्वतंत्र होना चाहते है| बम फेंकने के बाद वहीं पर भगत सिंह(Bhagat Singh) और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने अपने आप को गिरफ्तार भी करा लिया था।

इसके बाद'लाहौर षडयंत्र' के इस मुकदमें में भगतसिंह को और उनके दो अन्य साथियों, राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को एक साथ फांसी दे दी गयी थी। यह भी माना जाता है कि फांसी के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गयी  थी लेकिन लोगों के आन्दोलन से डरी हुई सरकार ने 23-24 मार्च की रात में ही इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी और रात के अंधेरे में ही सतलज नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी करवा दिया। उनके परिवार वालो को भी उनसे मिलने नहीं दिया था|
भगत सिंह(Bhagat Singh) ने अपने प्राणों की चिंता किये बिना हस्ते-हस्ते अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था| उन्होंने जो कार्य हमारे देश के लिए किया वह ऐसे ही संभव नहीं था उसे करने के लिए भगत सिंह(Bhagat Singh) में कुछ अदभुत शक्तियां विधमान थी| 

इन शक्तियों का वर्णन निम्नलिखित हैं|

निडर:

भगत सिंह(Bhagat Singh) अपने बचपन से ही बहुत निडर थे| अपने निडर स्वभाव की वजह से ही उन्होंने बहुत कम आयु में ही अंग्रेजी हुकुमुत से लोहा ले लिया था| एक बार भगत सिंह(Bhagat Singh) खेतो में अपने पिता के साथ गए और खेत की मिट्टी में कुछ लकड़ियों के टुकड़े लगाने लगे| भगत सिंह(Bhagat Singh) को ऐसा करते देख उनके पिता ने पूछा कि भगत आप यह क्या कर रहे हो तो भगत सिंह(Bhagat Singh) का जवाब था “पिताजी मै बन्दूके बो(रोप) रहा हूँ” उन्हें उनके बचपन से ही कभी भी भय ने नहीं छुआ था| जब उन्हें फांसी पर लटकाने के लिए ले जाया जा रहा था तब भी उनके चेहरे पर चिंता के भाव बिलकुल भी नहीं थे बल्कि वह तो मात्रभूमि के लिए हस्ते-गाते सूली पर लटक गए थे|

देशप्रेमी:

भगत सिंह(Bhagat Singh) को अपने देश, अपनी मात्रभूमि से बचपन से बहुत प्रेम था| ऐसा इसीलिए भी था क्योंकि भगत सिंह(Bhagat Singh) के चाचा और पिता दोनों भी देश भक्त थे और अंग्रेजी हुकूमत से अपने देश को आजाद करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे| देश प्रेम तो उन्हें विरासत में मिला था| जलियावाला बाग हत्याकांड ने तो उनका ह्रदय पुरी तरह परिवर्तित कर दिया था और इस घटना के तुरंत बाद तो अंग्रेजो से अपना देश आजाद करवाने के लिए उनका खून खोलने लगा था| वे अंग्रेजो के अपनी देश की भूमि पर कदम रखने मात्र से ही क्रोधित हो जाते थे|     

शायर:

भगत सिंह(Bhagat Singh) का एक और गुण शायरी लिखना भी था| वे खाली समय में देश प्रेम से ओत-प्रोत शायरी लिखा करते थे| जब भगत सिंह(Bhagat Singh) बंदी बनाकर जेल में बंद हो गए थे तो वे जेल में भी शायरी लिखा करते थे| फाँसी के कुछ दिन पहले 3 मार्च 1931 को अपने भाई कुलतार सिंह को भेजे गए एक ख़त में भगत सिंह(Bhagat Singh) ने यह शायरी लिखी थी -

उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।।

व्यवहार कुशल:

भगत सिंह(Bhagat Singh) एक व्यवहार कुशल व्यक्ति थे| वह अपने देश के बच्चे-बच्चे से प्यार करते थे| वह बच्चे बड़ो सभी भी एक दम घुल-मिल जाते थे| जो व्यक्ति उनसे एक बार मिल लिया वह उन्हें और उनके अच्छे व्यवहार को कभी भी नहीं भुला था| उनकी व्यवहार कुशलता की वजह से जेल में भी उनके बहुत से मित्र बन गए और दुश्मन भी उनके दोस्त बन गए|

मोह माया से दूर:

भगत सिंह(Bhagat Singh) मोह माया से कोसो दूर थे| उन्हें मोह माया ने कभी भी नहीं छुआ था| भगत सिंह(Bhagat Singh) भी अपने घर में रहकर आराम की जिंदगी बिता सकते थे पर उन्होंने सभी मोह माया को भंग कर अपने देश को आजादी दिलाने के लिए असंख्य कष्ट सहे| उनके परिवार के लोग उनका विवाह भी करना चाहते थे परन्तु भगत सिंह(Bhagat Singh) जी ने यह कहकर इंकार कर दिया था कि मेरा विवाह तो पहले ही अपने देश की आजादी से हो चुका है और में उसको हासिल करके ही रहूँगा|

उच्च विचार:

भगत सिंह(Bhagat Singh) उच्चे विचारो के धनी थे| यधपि उस समय में जब हमारा देश पुरी तरह अंग्रेजो के अधीन था| कुछ भी ऐसी सम्भावनाये नहीं दिखाई दे रही थी की देश कभी आजाद भी होगा| लेकिन उस कठिन समय में भी भगत सिंह(Bhagat Singh) जी ने उच्च विचारो का साथ कभी नहीं छोड़ा था| उन्होंने जेल में भी अपने विचारो का साथ कभी नहीं छोड़ा| वह समय-समय पर जेल प्रशासन से अपने और अन्य जेल कैदियों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ते रहते थे | और कैदियों को अच्छा खाना, पढने के लिए पुस्तके या अख़बार आदि मुहैया करने की मांग करते रहते थे|

मृत्यु का भी भय नहीं

भगत सिंह(Bhagat Singh) अपने जीवनकाल में कभी भी मृत्यु से भयभीत नहीं हुए थे| वह अपने हक के लिए अंग्रेजी हुकूमत से न जाने कितनी बार भीड़ गए| अंग्रेज भी इस बात को जानने लगे थे कि भगत सिंह(Bhagat Singh) को अपने प्राणों की जरा भी चिंता नहीं हैं| अंग्रेज भगत सिंह(Bhagat Singh) से बहुत डरने लगे थे इसीलिए उन्होंने भगत सिंह(Bhagat Singh) को फांसी पर लटका दिया था| 

लोकप्रिय:

भगत सिंह(Bhagat Singh) एक लोकप्रिय क्रन्तिकारी थे | दुश्मन हो या दोस्त सभी के भगत सिंह(Bhagat Singh) प्रिय थे| जब भगत सिंह(Bhagat Singh) को फांसी हुई थी तो हजारों-लाखों की तादाद में लोग जेल के बहार मौजूद थे|

अलग-अलग भाषाओ का ज्ञान:

भगत सिंह(Bhagat Singh) को कई भाषाओ का ज्ञान था| जिनमे हिन्दी भाषा ,उर्दू भाषा ,पंजाबी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के अलावा बांग्ला भाषा प्रमुख हैं|

जुनूनी शख्सियत:

भगत सिंह(Bhagat Singh) की शख्सियत एक जुनूनी व्यक्ति की थी| देश की आजादी उन पर सिर चढ़ कर बोलती थी| उन्हें तो बस एक ही जूनून था की उनका देश आजाद हो, उनकी मात्रभूमि पराधीनता की बेडियो में जकड़ी न रहे  चाहे उसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े|  

तुरंत निर्णय लेने की क्षमता:


भगत सिंह(Bhagat Singh) में एक और शक्ति थी जो उन्हें दुसरे क्रांतिकारियों से अलग खड़ा करती थी| वह थी उनकी तुरंत निर्णय लेने की क्षमता| उन्होंने अपने जीवनकाल में कई बार तुरंत निर्णय लिए थे जैसे- विवाह न करने का निर्णय, लाला लाजपत रॉय जी की हत्या का बदला लेना, असेम्बली में बम फेकना हो| उन्होंने यह सब निर्णय तुरंत ले अंग्रेजी सरकार के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कर दी थी और अंग्रेजो की रातो की नींद उड़ा दी थी| 

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